इस मंदिर को लोग 'घंटियों वाला मंदिर' और 'चिट्ठियों वाला मंदिर' के नाम से भी जानते हैं. मंदिर के प्रवेश से लेकर आखिरी छोर तक यहां लाखों की संख्या में घंटियां और चिट्ठियां टंगी हुई हैं.
वैसे तो इंसान न्याय के लिए अदालतों का सहारा लेते हैं, पर हमारी अदालतों में अनगिनत मुकदमे लटके हुए हैं. लेकिन न्याय के देवता गोलू देवता की इस अदालत में बिना वकील और जज के भी इंसाफ मिलता है. यह ऐसी अदालत है जहां न कोई जज है, न कोई वकील, और न कोई फीस, फिर भी यहां हर किसी को न्याय मिलता है.
जिनकी भी यहां मनोकामना पूरी होती है, वे यहां घंटियां बांध जाते हैं. जो लोग यहां आने में असमर्थ होते हैं, वे अपनी परेशानी चिट्ठियों के माध्यम से गोलू देवता तक पहुंचाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर यहां आता है, गोलू देवता उसकी प्रार्थना अवश्य पूरी करते हैं.
आइए, गोलू देवता की पौराणिक कथा और उनके न्यायप्रियता की कहानी को विस्तार से जानते हैं.
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गोलू देवता मंदिर, चितई ,अल्मोड़ा |
गोलू देवता की उत्पत्ति की पौराणिक कथा:
उत्तराखंड में गोलू देवता ऐसे भगवान माने जाते हैं जिन्हें अल्मोड़ा और उसके आसपास के लोग सबसे पहले पूजा करते हैं और उसके बाद अन्य देवताओं की पूजा की जाती है.
झालुराईकी सात रानियां थीं, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी. झालुराई अक्सर इस चिंता में रहते थे कि अगर उनकी कोई संतान नहीं होगी, तो उनके राज्य और वंश को कौन आगे बढ़ाएगा. इस चिंता के साथ, वे भगवान भैरव की तपस्या करते हैं. भैरव देव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देते हैं. तब झालुराई उनसे संतान सुख की प्रार्थना करते हैं.
भैरव देव उन्हें आठवां विवाह करने का आदेश देते हैं और कहते हैं कि आपकी जो आठवीं रानी होगी, उसकी कोख से मैं जन्म लूंगा. झालुराईयह सुनकर प्रसन्न होते हैं और वापस अपने राज्य लौट जाते हैं.
समय बीतता जाता है और झालुराई इस सोच में रहते हैं कि उन्हें आठवीं स्त्री कहां मिलेगी जिससे वे विवाह कर सकें. एक दिन, जब वे शिकार के लिए जंगल में गए होते हैं, वे भटक जाते हैं और उन्हें प्यास लगती है. तभी उन्हें पास में एक तालाब दिखाई देता है, जहां वे पानी पीने के लिए जाते हैं. जैसे ही वे पानी पीने लगते हैं, एक सुंदर कन्या उन्हें आवाज देकर रोकती है और कहती है कि कृपया यह पानी न पिएं, यह मेरा तालाब और मेरा क्षेत्र है.
झालुराई उससे कहते हैं कि शायद आपको पता नहीं है कि मैं कौन हूं. कन्या कहती है कि वह उन्हें नहीं जानती. तब झालुराई उसे अपना परिचय देते हैं कि वे इस राज्य के राजा हैं. इस पर कन्या उनसे राजा होने का प्रमाण मांगती है. झालुराई हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं कि बताइए, आपको कैसे यकीन दिलाऊं कि मैं राजा हूं. कन्या कहती है, "अगर आप उन सामने लड़ते हुए बैलों की लड़ाई रोक सकते हैं, तो मैं मान लूंगी कि आप राजा हैं."
झालुराई बहुत कोशिश करते हैं, लेकिन बैलों को अलग नहीं कर पाते. यह देख, कन्या वहां जाती है और आसानी से बैलों को अलग कर देती है. यह देख झालुराई आश्चर्यचकित हो जाते हैं और उससे पूछते हैं कि उसने यह कैसे किया और उसका नाम क्या है. कन्या अपना परिचय देते हुए कहती है कि वह पंचदेवताओं की बहन कलिंगा है.
राजा ने प्रसन्न होकर उससे विवाह का प्रस्ताव रखा, कलिंगा कहती है कि इसके लिए आपको पंचदेवताओं से अनुमति लेनी होगी, और यदि उन्होंने हाँ कर दी, तो मैं भी आपका प्रस्ताव स्वीकार कर लूंगी. राजा पंचदेवताओं से अनुमति लेकर कलिंगा से विवाह कर लेते हैं.
जब राजा कलिंगा को विवाह करके अपने महल लाते हैं, तो उनकी सातों रानियां ईर्ष्या और क्रोध से भर जाती हैं. उन्हें लगता है कि यदि कलिंगा से राजा को संतान हो गई, तो उनकी महत्ता कम हो जाएगी. कुछ समय बाद, कलिंगा से एक पुत्र का जन्म होता है, लेकिन उस समय राजा झालुराई युद्ध में गए हुए थे. सातों रानियां, जो पहले से ही कलिंगा से नफरत करती थीं, नवजात शिशु को उठाकर उसकी जगह एक सिलबट्टा (पत्थर) कपड़े में लपेटकर रख देती हैं ताकि लगे कि कलिंगा ने पत्थर को जन्म दिया है. नवजात शिशु को जंगल में एक खड्ड में फेंक दिया जाता है, जहां विषैले बिच्छू होते हैं, लेकिन कोई भी बिच्छू उसे नहीं काटता. फिर वे बच्चे को सांपों के बीच रख देती हैं, पर सांप भी उसे नुकसान नहीं पहुंचाते.
आखिरकार, वे बच्चे को सफेद कपड़े में लपेटकर एक संदूक में रखकर पास की नदी में बहा देती हैं. वह संदूक नदी में बहते-बहते एक मछुआरे की नजर में आ जाता है. मछुआरा संदूक को किनारे पर लाता है, सोचते हुए कि इसमें बहुमूल्य रत्न होंगे. लेकिन जब वह संदूक खोलता है, तो उसमें एक बच्चा पाता है. कहा जाता है कि उस बच्चे के शरीर से प्रकाश निकल रहा था. मछुआरा उस बच्चे को अपने घर ले जाता है और पालने लगता है.
समय बीतता है और वह बच्चा बड़ा होकर गोलू देवता के नाम से विख्यात होता है. क्योंकि वह बचपन से गोल-मटोल दिखते थे, इसलिए उनका नाम गोलू पड़ा.
इधर, राजा झालुराई चिंतित थे क्योंकि उन्हें अभी तक कोई संतान नहीं हुई थी. जब गोलू देवता बड़े होते हैं, तो उनके सपने में झालुराई आते हैं और बताते हैं कि वे उनके पिता हैं. गोलू देवता अपने मछुआरे पिता से कहते हैं कि उन्हें एक घोड़ा दे दें ताकि वे राजा से मिलने जा सकें. लेकिन मछुआरा गरीब होता है और घोड़ा देने में असमर्थ रहता है. गोलू देवता के पास एक लकड़ी का घोड़ा होता है, जिसे वे अपनी दिव्य शक्तियों से असली घोड़ा बना देते हैं और उसी पर सवार होकर राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं.
रास्ते में उन्हें राजा की वही सातों रानियां तालाब के किनारे मिलती हैं। गोलू देवता उन्हें पहचान लेते हैं और सोचा कि इन्हें सबक सिखाना चाहिए ताकि वे राज्य में किसी और के साथ अन्याय न कर सकें. गोलू देवता अपने घोड़े को फिर से लकड़ी का बना देते हैं और तालाब के किनारे उसे पानी पिलाने लगते हैं. रानियां हंसते हुए कहती हैं कि तुम मूर्ख हो, लकड़ी के घोड़े को पानी पिला रहे हो. इस पर गोलू देवता कहते हैं, "जब महारानी कलिंगा एक पत्थर को जन्म दे सकती हैं, तो क्या मेरा लकड़ी का घोड़ा पानी नहीं पी सकता?"
यह सुनकर रानियां हैरान रह जाती हैं और राजा से उनकी शिकायत करती हैं. राजा झालुराई का सेनापति गोलू देवता को दरबार में ले आता है. राजा उनसे पूछते हैं कि तुमने रानियों का मजाक क्यों उड़ाया. गोलू देवता उन्हें सारा सच बताते हैं कि कैसे भैरव देव ने उन्हें आठवीं रानी की कोख से जन्म लेने का वचन दिया था और कैसे रानियों ने उन्हें नदी में फेंक दिया था.
यह सुनकर राजा क्रोधित हो जाते हैं और सातों रानियों को कारागार में डालने का आदेश देते हैं. लेकिन बाद में गोलू देवता और उनकी माता कलिंगा की प्रार्थना पर रानियों को माफी दे दी जाती है.
तभी से गोलू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाने लगा. कहा जाता है कि गोलू देवता के दरबार में कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ.
गोलू देवता और न्याय का प्रतीक:
गोलू देवता का जीवन न्याय के प्रति समर्पित था. एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार उनके पिता, राजा झाल राय ने एक ग़रीब किसान की जमीन हड़पने की कोशिश की.
किसान ने राजा के दरबार में गुहार लगाई, लेकिन राजा ने उसकी नहीं सुनी. तब गोलू देवता ने न्याय करते हुए किसान की जमीन उसे वापस दिलाई और अपने पिता को बताया कि राजा का कर्तव्य न्याय करना है, न कि अत्याचार. इस घटना के बाद गोलू देवता को न्यायप्रिय देवता के रूप में पूजा जाने लगा.
गोलू देवता के मंदिर और पूजा:
गोलू देवता के मुख्य मंदिर अल्मोड़ा, चम्पावत, और नैनीताल में स्थित हैं. अल्मोड़ा के घोड़ाखाल में स्थित गोलू देवता का मंदिर सबसे प्रसिद्ध है. यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए आते हैं.गोलू देवता के मंदिरों की विशेषता यह है कि यहाँ भक्त अपनी अर्जियाँ लिखकर घंटियों के साथ बाँधते हैं. माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से गोलू देवता के मंदिर में आकर प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. यही कारण है कि गोलू देवता को ‘बुलंद’ देवता भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी आवाज़ हर भक्त तक पहुँचती है.
गोलू देवता की महिमा:
गोलू देवता की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. केवल कुमाऊँ ही नहीं, बल्कि गढ़वाल और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भी लोग गोलू देवता की पूजा करते हैं. उनकी न्यायप्रियता के कारण लोग उन्हें हर मुश्किल घड़ी में याद करते हैं और न्याय की प्राप्ति के लिए उनकी शरण में आते हैं. गोलू देवता की कथाएँ और उनके प्रति श्रद्धा उनकी महिमा को और बढ़ा देती हैं.कहानी से प्रेरणादायक पाठ:
गोलू देवता की कहानी केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह न्याय और सत्य के प्रति हमारी आस्था को मजबूत करती है.उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे और निष्पक्ष होने का मार्ग ही सर्वोत्तम है. गोलू देवता के प्रति लोगों की श्रद्धा और विश्वास इस बात का प्रमाण है कि न्याय का कोई विकल्प नहीं होता. उत्तराखंड के लोग सदियों से गोलू देवता की पूजा करते आ रहे हैं, और उनकी कथा को पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते आ रहे हैं. गोलू देवता की न्यायप्रियता की यह कथा हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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