GHUGHUTI : कैसे एक पक्षी का नाम घुघुती पड़ा। सुनिए इस रोचक कहानी को.

अगर आप उत्तराखंड से हैं या कभी वहां जाने का मौका मिला है, तो आपने एक शब्द जरूर सुना होगा - घुघुती.

घुघुती पहाड़ों की एक खास पक्षी है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पक्षी का नाम घुघुती कैसे पड़ा? आइए, इस ब्लॉग में जानते हैं.



घुघुती के साथ उत्तराखंड की संस्कृति और मान्यताएँ:


उत्तराखंड की संस्कृति में घुघुती का एक महत्वपूर्ण स्थान है. यह पक्षी उत्तराखंड के पारंपरिक गीतों और कहानियों में प्रमुख रूप से मौजूद है. लोकगीतों में इसे "घुघुती बासूती" के रूप में उल्लेखित किया जाता है, जो आपसी प्रेम का प्रतीक है. घुघुती पहाड़ों की शांति और सुंदरता का प्रतिनिधित्व करती है, और इसके कोमल सुर लोगों को प्रकृति की सुंदरता का एहसास कराते हैं.

जब भी पहाड़ की घाटियों में घुघुती की आवाज गूंजती है, तो दिल की गहराइयों में कई पुरानी यादें ताजगी से झलक उठती हैं. घने जंगलों के बीच घास काटने वाली घस्यारी जब मायके को याद करती है, तो वह घुघुती का उच्चारण  उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगीत को गा कर करती है. जिसके बोल कुछ इस प्रकार है.


"घुघुती घूरोण लगी मेरा मैत की...
बौडी -बौडी एय गी ऋतू , ऋतू  चेत की,,,


हिंदी अनुवाद:

"मेरे मायके की घुघुती मुझे बुला रही है।
अब धीरे-धीरे चैत का महीना (मार्च-अप्रैल) आ गया है।"


वहीं दूसरी ओर, जब घर के छज्जे पर बैठी बुजुर्ग मां आंसू पोंछती हैं और अपने बेटे की खुशहाली की कामना करती हैं, तो घुघुती उनकी यादों और भावनाओं का हिस्सा बन जाती है.

जब वैशाख का महीना आता है, तो घुघुती पुरानी यादों की चिट्ठी लेकर घर के आंगन तक पहुंच जाती है. घुघुती पहाड़ियों के बच्चों से लेकर उम्र के हर पड़ाव में एक अहम भूमिका निभाती है. बचपन में मां की लोरी में घुघुती की आवाज सुनाई देती थी, विवाह के समय घुघुती मायके की याद दिलाती थी, और बुजुर्ग अवस्था में यह प्रदेश गए बच्चों की यादों को ताजा करती है.

पहाड़ का घुघुती से अटूट रिश्ता है. अनगिनत गानों ,अपने-पराये लोगों की यादों में भी घुघुती हर जगह मौजूद है.


घुघुती का नाम घुघुती कैसे पड़ा:

इसका कोई सटीक जवाब तो नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि जब घुघुती पेड़ की शाखों पर या घर के आंगन में बैठकर अपनी आवाज में कुछ गाती है, तो उसकी आवाज "घु घु ति" जैसी सुनाई देती है. इसी वजह से इसे घुघुती कहा जाने लगा.


घुघूती की पहचान और प्रजाति:

हिंदी फिल्मों में जिस तरह कबूतर को संदेशवाहक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, उसी तरह पहाड़ी क्षेत्रों में घुघूती को संदेशवाहक माना जाता है . पहाड़ों में पाई जाने वाली घुघूती कबूतर परिवार का ही एक पक्षी है.

यह पक्षी मुख्यतः हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है, जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, और नेपाल। घुघूती एक मध्यम आकार का पक्षी है जिसकी लंबाई लगभग 30-36 सेमी होती है. इसके पंख भूरे रंग के होते हैं, जिन पर काले और सफेद रंग की धारियाँ होती हैं.

पहाड़ों में मुख्यतः तीन प्रकार की घुघूती पाई जाती हैं:


माल्या घुघूती: यह सबसे बड़े आकार की होती है, जिसके गले में दो काली चूड़ी जैसी डिजाइन होती है.

मसुर्याली घुघूती: यह माल्या से थोड़ी छोटी होती है, और इसके गले में मसूर के आकार और रंग के कई दाने होते हैं.

काठी घुघूती: यह भूरे रंग की होती है और इसके गले में कुछ काले रंग के दाने होते हैं.

घुघूती का भोजन:

घुघूती मुख्यतः बीज, फल, और छोटे कीड़े-मकोड़ों को अपने भोजन में शामिल करती है. 

यह अक्सर जमीन पर अपना भोजन खोजती है और अपने आसपास के परिवेश को साफ रखती है.

घुघूती का प्रजनन:

वसंत और गर्मी के महीनों में आमतौर पर घुघुती का प्रजनन काल होता है.

ये पक्षी घोंसला बनाने के लिए पेड़ों की टहनियों, पत्तियों और घास का उपयोग करती हैं.

मादा घुघुती एक बार में 2-3 अंडे देती है, जिन्हें वह और नर घुघुती मिलकर सेते हैं.


घुघूती उत्तराखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण अंग है. इसके मधुर गीत और उपस्थिति सदैव ही पर्यटकों और स्थानीय निवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं.

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