RAJULA और MALUSHAHI : उत्तराखंड की प्रसिद्ध प्रेम कहानी

उत्तराखंड न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की लोक कथाएँ भी इस राज्य की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा हैं.

ऐसी ही एक अनोखी प्रेम कहानी है - राजुला और मालूशाही की, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए है.

"यह चित्र AI की सहायता से तैयार किया गया है"


कहानी का आरम्भ:

राजुला और मालूशाही की प्रेम कहानी कुमाऊं क्षेत्र की एक पुरानी गाथा है, जो भावुकता और समर्पण का प्रतीक है.

कहानी की शुरुआत कुमाऊँ के चौखुटिया रंगीली बैराट से होती है. चौखुटिया को बैराठ के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन कथाओं के अनुसार, वर्तमान चौखुटिया महाभारत के राजा विराट की राजधानी थी.

कहा जाता है कि एक समय चौखुटिया में कत्युरी राजवंश के राजा दुलाशाही का राज था. राजा के पास सब कुछ था, सिवाय एक संतान के.इसी कारण राजा और उनकी रानी धर्मा बहुत दुखी रहते थे. एक रात रानी को सपने में भगवान बागनाथ प्रकट होते हैं और उनसे कहते हैं कि उनके भाग्य में संतान का सुख अवश्य है.भगवान की यह बात सुनकर रानी बहुत खुश होती हैं और उनके मन में एक नई आशा जागती है.

फिर वह राजा के साथ भगवान बागनाथ के दर्शन के लिए बागेश्वर के लिए निकल पड़ती हैं. वहां पहुँचकर उनकी मुलाकात एक और दंपति से होती है, जो राजा-रानी की तरह ही संतान प्राप्ति की मनोकामना लेकर वहां आए थे. ये दूसरे दंपति व्यापारी सुनपति शौका और उनकी पत्नी गांगुली थे.

कहते हैं, दुख एक ऐसी चीज है जो हमें ईश्वर और किसी अनजान इंसान, दोनों के करीब ले आता है. यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ. रानी और गांगुली के सूनेपन ने दोनों परिवारों को एक साथ ला दिया. उन्होंने यह फैसला किया कि यदि उनके पुत्र और पुत्री होंगे, तो वे उनकी शादी कर देंगे.

इस प्रकार नियति ने इस प्रेम कहानी की सबसे पहली नींव रखी.

समय बीतता गया और भगवान बागनाथ के आशीर्वाद से राजा दुलाशाही के घर राजकुमार मालूशाही का जन्म हुआ, और व्यापारी सुनपति के घर राजुला ने जन्म लिया.

लेकिन कुछ ही दिनों बाद एक संकट आ जाता है. ज्योतिषियों ने राजा दुलाशाही को बताया कि, “हे राजा, तुम्हारा पुत्र बहुत भाग्यशाली है, लेकिन उसकी मृत्यु जल्द ही हो जाएगी। अगर तुम उसे बचाना चाहते हो, तो जन्म के पांचवे दिन उसकी शादी करानी होगी.”

राजा को अचानक सुनपति से किया हुआ वादा याद आता है. वह तुरंत अपने एक दूत को सुनपति के घर भेज देते हैं और आदेश देते हैं कि वह राजुला से शादी की बात को अंतिम रूप दे कर लौट आएं. सुनपति इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और तुरंत अपनी छोटी सी बेटी राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर देते हैं.

अब जब लगने लगता है कि सब कुछ ठीक हो गया है, तभी नियति एक नया अध्याय शुरू करती है. शादी के कुछ ही दिनों बाद राजा दुलाशाही की मृत्यु हो जाती है. इस मौके का फायदा उठाकर कुछ चालाक दरबारी अफवाह फैलाने लगते हैं कि जो बच्ची शादी के बाद अपने ससुर को खा गई, उसके बारे में कोई भी जानकारी रखना अशुभ होगा, इसलिए बड़ी होने पर मालूशाहीको यह बात नहीं बताई जाएगी.

राज्य में सभी लोग और रानी भी इस बात को मान लेते हैं और फैसला करते हैं कि मालूशाहीको राजुला के बारे में कभी नहीं बताया जाएगा.

समय बीतता है और राजुला और मालूशाही जवान हो जाते हैं.

दूसरी ओर, सुनपति इस बात से परेशान होने लगे कि राजा दुलाशाही की ओर से कोई सूचना क्यों नहीं आ रही है. लेकिन क्या करें, समय चलता रहा और जवाब कभी मिला ही नहीं.

एक दिन, राजुला ने अपनी मां से बातचीत के दौरान राजा मालूसाही और रंगिला बैराट राज्य के बारे में सुना. मालूशाही और बैराट का नाम सुनते ही राजुला के मन में एक आंधी सी दौड़ जाती है. उसे ऐसा एहसास होता है मानो उसका बैराट और मालूशाही से गहरा संबंध है. उसने तुरंत अपनी मां से कहा, “माँ, मेरा विवाह रंगिला बैराट में ही करना है.”

राजुला की बात सुनकर उसकी मां घबरा जाती हैं और उसकी बात को अनसुना कर देती हैं.

समय का पहिया यूं ही चलता रहता है और राजुला की सुंदरता की चर्चा चारों दिशाओं में फैल जाती है. इसी बीच, हूण देश के राजा विकीपालको भी राजुला की सुंदरता की खबर लग जाती है और वह उसे देखने के लिए सुनपति के घर चले जाते हैं.

राजुला को देखकर विकीपाल उसकी सुंदरता में खो जाते हैं और उसे अपनी दुल्हन बनाने की इच्छा जताते हैं. वे सुनपति को धमकी भी देते हैं कि यदि उसने राजुला की शादी उनसे नहीं की, तो परिणाम अच्छा नहीं होगा.

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पहला मिलन:

उधर, बैराट में एक अनोखी घटना होती है। मालूसाहीने अपने सपने में राजुला को देखा और उसे सपने में ही वचन दिया कि एक दिन वह उसे शादी करके अपने घर ले आएगा.

कुछ ऐसा ही सपना राजुला को भी आता है। अब एक ओर मालूसाही का वचन था और दूसरी ओर हूण राज्य के राजा विकीपाल की धमकी. इन सब से दुखी होकर राजुला ने फैसला किया कि वह खुद बैराट जाएगी और मालूसाही से मिलेगी. उसने अपनी मां से बैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा, "बेटी, तुझे तो शादी करके हूण राज्य जाना है, फिर बैराट के रास्ते से तेरा क्या लेना-देना?" मां की बात सुनकर राजुला और परेशान हो जाती है और समझ जाती है कि अब उसका कोई साथ नहीं देगा.

लेकिन उसे अपने सपने पर पूरा यकीन था. वह जानती थी कि उसका और मालूसाही का जरूर कोई खास रिश्ता है। इसी एहसास के साथ, एक रात राजुला चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर बैराट की ओर निकल पड़ती है। पहाड़ों को पार करते हुए और मन में प्रेम का विश्वास लिए, राजुला बैराट की ओर चल पड़ी.

इसी बीच, मालूसाही ने भी अपनी मां से राजुला से शादी करने की इच्छा जताई. राजुला का नाम सुनकर रानी के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह सोच में पड़ गईं कि जिस नाम को उन्होंने इतने सालों तक मालूसाही से छिपाकर रखा, आखिर वह नाम उसके सामने कैसे आ गया.

रानी डर जाती हैं, और इसी दौरान राजुला भी मालूसाही के राज्य पहुंच जाती है. जैसे ही रानी को राजुला के आने की खबर मिलती है, वह और घबरा जाती हैं और अपने वैद्य को आदेश देती हैं कि मालूसाही को कोई जड़ी-बूटी देकर सुला दें। वैद्य ऐसा ही करते हैं, और जड़ी-बूटी के सेवन के बाद मालूसाही गहरी नींद में चला जाता है.

इस बीच, राजुला की मालूसाही से मुलाकात होती है, लेकिन उसे मालूसाही गहरी नींद में मिलता है. उसने मालूसाही को जगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं जागा। निराश होकर, राजुला ने उसे अपनी हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने रखकर, रोते-रोते अपने पिता के घर लौट गई.


प्रेम की परीक्षा:

जड़ी-बूटी का असर खत्म होते ही मालूसाही की नींद खुल गई. होश में आने पर उसने अपने हाथ में राजुला द्वारा पहनाई गई हीरे की अंगूठी देखी और वह पत्र भी पढ़ा, जिसमें लिखा था, "हे मालू, मैं तो तुम्हारे पास आई थी, लेकिन तुम गहरी नींद में थे. अगर तुम मुझसे प्यार करते हो तो मुझे लेने हूण राज्य आना," क्योंकि मेरे पिता अब मेरी शादी किसी और के साथ कर रहे हैं."

यह पढ़कर मालूसाही टूट जाता है. जैसे राजुला की शादी की खबर ने उसे जैसे जीते जी मार दिया हो. उसे विश्वास नहीं होता कि उसकी मां ने उसे राजुला से मिलने से रोका. उसका मन उजड़ सा गया था, लेकिन उसे मालूम था कि यह समय रोने का नहीं, बल्कि राजुला को हूण राज्य से वापस लाने का है. और इसी खातिर वह गुरु गोरखनाथ की शरण में चला जाता है. दरअसल, हूण राज्य के लोग तंत्र विद्या के महारथी थे और मालूसाही जानता था कि उनसे मुकाबला करना आसान नहीं होगा.

मालूसाही ने गुरु गोरखनाथ से हाथ जोड़कर विनती की कि राजुला से मिलवाने में वह उसकी मदद करें. लेकिन गुरु गोरखनाथ भांप चुके थे कि यह काम इतना आसान नहीं है. इसलिए उन्होंने मालूसाही से वापस जाकर राज-पाट संभालने को कहा. लेकिन मालूसाही कहां मानने वाला था. वह प्रेम में था, जो उसके जीवन का मकसद और मर्म बन गया था. वह राजुला के दुख को भी समझ रहा था और उसे इस तरह अकेला कैसे छोड़ सकता था.

मालूसाही का प्रेम देखकर गुरु गोरखनाथ पिघल जाते हैं और मालूसाही को दीक्षा देकर बहुत सारी विद्या भी सिखाते हैं. उन्होंने मालूसाही को वे तंत्र-मंत्र भी सिखाए जो उसे हूण राज्य के लोगों से बचा सकते थे. इसके बाद मालूसाही ने राजुला से मिलने के लिए राज-पाट छोड़ दिया और धूनी की राख शरीर पर मलकर जोगी का वेश धारण कर लिया.


संघर्ष और विजय:

मालूसाही जोगी के वेश में घूमता हुआ आखिरकार हूण राज्य पहुँच जाता है. साथ में चालाकी से अपनी कत्युरी सेना को भी लेकर जाता है. मालूसाही घूमते-घूमते राजुला के महल पहुँचता है. वहाँ बड़ी चहल-पहल थी क्योंकि विकीपाल राजुला को शादी करके ले आया था. विकीपाल जोगी को देखता है और उसे महल के भीतर आने को कहता है. उसे जोगी के हाव-भाव देखकर उसे लग गया था कि यह जरूर कोई भेषधारी है और हो ना हो, कोई राजा है.

विकीपाल उसे और उसके साथ आए साधुओं को मार डालने की  योजना बनाता है. लेकिन मालूसाही को इस बात की बिलकुल चिंता नहीं होती क्योंकि उसकी नजर तो राजुला को ढूंढ रही थी. राजा विकीपाल की  योजना थी कि मालूसाही को खीर खिलाने के बहाने जहर दे दिया जाए और इस काम को पूरा करने के लिए वह अपने सैनिकों और दरबारियों से मिलने चला जाता है.

मालूसाही के पास यही मौका होता है जिसमें वह राजुला से मिलने की कोशिश कर सकता था, लेकिन महल में आकर वह रानी राजुला से मिले तो कैसे मिले, इसलिए वह भिक्षा के लिए आवाज़ लगाने लगता है. और थोड़ी ही देर में उसके सामने गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आ जाती है.

उसे आते ही जोगी बने मालूसाही की नज़रें राजुला पर टिक जाती हैं. उसने सपने में देखी राजुला को अपने सामने देखा तो उत्साहित हो गया. उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था, तभी वह बोल पड़ा, "अरे रानी, तू तो बड़ी भाग्यशाली  है, तेरा घर कहाँ है?" तभी राजुला ने जोगी की ओर अपना हाथ बढ़ाया और जोगी से अपना भाग्य बताने को कहा. जोगी ने कहा कि वह बिना नाम पता जाने हाथ नहीं देखेगा. राजुला ने उसे बताया, "मैं सुनपति सोखा की लाडली राजुला हूँ. अब बताइए, जोगी जी, मेरा भाग्य क्या है?"

जोगी बने मालूसाही ने प्यार से राजुला का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा, "तेरे भाग्य में तो रंगीले बैराट का मालूसाही था, तू यहाँ कैसे आ गई?" इस बात पर राजुला ने रोते हुए कहा, "हे जोगी, अगर मेरे भाग्य में बैराट था, तो मुझे यहाँ क्यों आना पड़ा?"

इसके बाद मालूसाही अपना जोगी वेश उतारकर कहता है, "मैंने तेरे लिए ही जोगी वेश लिया है, राजुला. मैं तुझे यहाँ से ले जाने आया हूँ." मालूसाही को देखकर राजुला का चेहरा चमक उठता है. उन दोनों के लिए वह पल मानो रुक सा गया था. राजुला को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने उसका मालूसाही खड़ा है. दरअसल, राजुला का विश्वास कहीं न कहीं डगमगा गया था. उसे लगने लगा था कि उसका प्यार छलावा था, लेकिन मालूसाही को सामने देखकर उसका विश्वास फिर से पक्का हो गया.

वह समझ गई कि उसका प्यार सच्चा है और अब उन्हें साथ होने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन यह इतना आसान तो शुरू से नहीं था. अचानक विकीपाल राजा के सैनिकों के आने की आवाज़ आती है और मालूसाही जल्दी से फिर से जोगी वेश में आ जाता है. सैनिक मालूसाही से कहते हैं कि राजा विकीपाल ने उनके लिए खाने का इंतजाम किया है. जोगी मालूसाही उनकी बात मान लेता है और अपने साथ आए साधुओं के साथ भोजन करने चला जाता है. लेकिन उसे क्या पता था कि यह भोज विकीपाल की चाल थी.

जैसे ही मालूसाही खीर खाता है, उसकी साँसें उखड़ने लगती हैं, और राजुला का मालूसाही वहीं दम तोड़ देता है. मालूसाही की मौत की खबर सुनकर राजुला पत्थर सी हो जाती है, उसके सीने में मानो हर सांस टूटने लगती है. राजुला को यकीन नहीं होता कि जिस मालूसाही के साथ रहने का सपना उसने थोड़ी देर पहले देखा था, वह हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो गया है.

प्रेम में एक अजीब बात होती है—प्रेम जितना हमें मज़बूत बनाता है, उतना ही कमज़ोर भी. इस समय राजुला पूरी तरह टूट चुकी थी. लेकिन यह प्रेम कहानी का अंत नहीं था। शायद नियति को राजुला पर तरस आ गया होगा, इसीलिए इस हादसे की खबर गुरु गोरखनाथ तक पहुँच जाती है. गुरु गोरखनाथ बिना समय गंवाए अपनी सेना के साथ हूण राज्य आ जाते हैं. वहाँ पहुँचकर अपनी विद्या का प्रयोग करके गुरु गोरखनाथ मालूसाही को जीवित कर देते हैं. पता नहीं यह गुरु गोरखनाथ की विद्या थी या राजुला का प्यार, जिसे देखकर यमराज भी मालूसाही का प्राण उसे वापस कर देते हैं.

फिर क्या था, मालूसाही अपने प्रेम के लिए हूण के राजा विकीपाल से युद्ध करता है और उसे मार गिराता है. इसके बाद मालूसाही ने अपनी जीत का संदेश अपनी माँ को बैराट भेजा, जिसके बाद माँ ने रानी राजुला के स्वागत के लिए पूरे राज्य को सजाया. मालूसाही बैराट पहुँचा, जहाँ उसने धूमधाम से राजुला से शादी रचाई. दोनों खुशी-खुशी साथ रहने लगे और प्रजा की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया.

राजुला और मालूसाही की प्रेम कहानी कुमाऊं क्षेत्र की एक पुरानी गाथा है, जो भावुकता और समर्पण का प्रतीक है। राजुला, एक साधारण चरवाहे की बेटी थी, जो अपने पिता के साथ जंगल में रहती थी। उसकी खूबसूरती और बुद्धिमत्ता की चर्चा दूर-दूर तक थी। दूसरी ओर, मालूसाही एक राजकुमार था, जो कत्यूर राज्य के राजा था. उसकी वीरता और धैर्य की कहानियाँ पूरे राज्य में प्रसिद्ध थीं.


कहानी की विरासत:

राजुला और मालूशाही के प्रेम की कहानी संघर्ष और बलिदान से भरी हुई है। मालूसाही को अपने प्रेम को पाने के लिए न केवल अपने परिवार और समाज के खिलाफ खड़ा होना पड़ा, बल्कि उसने अपने राज्य की भी चिंता छोड़ दी। दूसरी ओर, राजुला ने भी अपने प्रेम को पाने के लिए हर संघर्ष का सामना किया. अंत में, उनका प्रेम सभी बाधाओं को पार कर गया और दोनों ने समाज की स्वीकृति प्राप्त कर ली.

राजुला और मालूशाही की प्रेम कहानी आज भी उत्तराखंड के गाँवों में गाई जाती है. यह कहानी न केवल प्रेम का प्रतीक है, बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्चा प्रेम हर बाधा को पार कर सकता है. यह कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है कि वे अपने प्रेम और सपनों के लिए संघर्ष करें और अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाएं.

इस प्रकार, राजुला और मालूशाही की प्रेम कहानी उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सदियों से लोगों को प्रेम और समर्पण की प्रेरणा देती आ रही है। यह कहानी न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि एक सीख भी है कि सच्चे प्रेम में कितनी शक्ति होती है.

इस ब्लॉग को पढ़कर आशा है कि आप भी राजुला और मालूसाही की प्रेम कहानी के जादू में बंध जाएंगे और इसे अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करेंगे.

यह लेख उत्तराखंड की इस अद्भुत प्रेम कहानी के प्रति हमारी श्रद्धा का प्रतीक है, और हमें गर्व है कि हम ऐसी धरोहर को सहेजने और साझा करने में सक्षम हैं.

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