एकेश्वर महादेव का धार्मिक महत्व और इतिहास | Ekeshwar Madadev

उत्तराखंड के गढ़वाल में केदार क्षेत्र के अंतर्गत पाँच शिव पीठ आते हैं:


  1. एकेश्वर महादेव
  2. ताड़केश्वर
  3. बिंदेश्वर महादेव
  4. क्यूंकालेश्वर महादेव
  5. किल्किलेश्वर महादेव


आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे एकेश्वर महादेव शिव पीठ के बारे में, जो पौड़ी गढ़वाल ज़िले के एकेश्वर पंखेत ब्लॉक में स्थित है. इसे गढ़वाली में "इगासर" के नाम से जाना जाता है. एकेश्वर महादेव का धार्मिक महत्व सदियों से बना हुआ है. कुछ पुराणिक संदर्भों में कहा गया है कि यहाँ पांडवों ने भगवान शिव की तपस्या की थी.

जहाँ तक मंदिर का प्रश्न है, ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना संवत 810 के आसपास आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. यहाँ की प्राचीन मूर्तियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि यह मंदिर सदियों पहले स्थापित किया गया था.

मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हो चुका है. हाल के वर्षों में, स्थानीय लोगों की सहायता से इसे नया और भव्य रूप दिया गया है, जिससे अब यह आधुनिक समय के मंदिरों जैसा दिखता है.


 एकेश्वर महादेव मंदिर ,पौड़ी गढ़वाल

मंदिर में अन्य धार्मिक स्थल 

एकेश्वर महादेव के मुख्य मंदिर के अलावा यहाँ माँ वैष्णवी दरबार, वैष्णवी देवी गुफा और भैरव मंदिर भी हैं. कहा जाता है कि भैरव मंदिर से बद्रीनाथ मंदिर तक एक सुरंग थी, जिसे वर्षों पहले बंद कर दिया गया था.

एकेश्वर मंदिर में हर साल बैशाख दो गते को 'कौथिग' या मेला लगता है. पुराने समय से ही इस मंदिर में पति-पत्नी संतान प्राप्ति के लिए ‘खड़रात्रि’ व्रत रखते आए हैं. उत्तराखंड के कई मंदिरों में खड़रात्रि का आयोजन किया जाता है. इस व्रत में महिलाएं अपने पति के साथ संतान प्राप्ति की कामना से रात भर दीपक जलाकर खड़ी रहती हैं और भगवान शिव की स्तुति करती हैं.


एकेश्वर महादेव में खडरात्रि और कौथिग मेला


बैशाख दो गते के दिन एकेश्वर मंदिर में खड़रात्रि  का आयोजन होता है. इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. धीरे-धीरे यह आयोजन एक मेले का रूप लेने लगा और अब बैशाख दो गते पर यहाँ मेला लगता है, जिसे 'इगासुर कौथिग' के रूप में भी जाना जाता है. केवल चौंदकोठी ही नहीं, बल्कि पूरे पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र में इसी कौथिग से मेलों की शुरुआत होती है. कौथिग के दिन लोग अपने खेतों में उगाए गए पहले अनाज को भगवान शिव को अर्पित करते हैं. शिवरात्रि के दिन भी यहाँ शिवलिंग पर दूध, गंगाजल और बेलपत्र चढ़ाने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है.


समय-समय पर भक्तजन एकेश्वर महादेव मंदिर में भंडारे का आयोजन भी करते हैं.इस क्षेत्र के नवविवाहित जोड़े भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहाँ आते है.




एकेश्वर महादेव तक पहुंचने के मार्ग और प्राकृतिक सौंदर्य


एकेश्वर महादेव मंदिर काफी पहले ही मोटर मार्ग से जुड़ गया था. कोटद्वार या पौड़ी के रास्ते से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है.

सतपुली से एकेश्वर के लिए नियमित रूप से बस और टैक्सी चलती हैं. पौड़ी के रास्ते सतपुली होते हुए या ज्वाल्पा से जणदादेवी होते हुए भी यहाँ पहुँचा जा सकता है.

इसके अलावा, बौंसाल और ज्वाल्पा के बीच से भी दो नए मोटर मार्ग बन गए हैं, जो सीधे एकेश्वर तक जाते हैं. एकेश्वर पहुँचने पर सड़क से ही मंदिर का स्पष्ट मार्ग दिखाई देता है. मंदिर के पास बाँज और चीड़ के घने जंगल हैं और पास में ठंडे पानी का एक झरना भी बहता है.

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