चलिए जानते हैं ऋषिकेश में घूमने के लिए 10 अद्भुत स्थानों के बारे में:
1. लक्ष्मण झूला
लक्ष्मण झूला, गंगा नदी पर बना एक प्रसिद्ध पुल है. यह पुल 450 फीट लंबा है जो हवा में झूलता रहता है. यहां से गंगा के खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं.हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे गंगा नदी को पार किया था. यही कारण है कि इस स्थान का नाम "लक्ष्मण झूला" पड़ा.
पुल के पश्चिमी किनारे पर लक्ष्मण जी का मंदिर भी स्थित है. कहा जाता है कि इस पुल का निर्माण ब्रिटिश सरकार की देखरेख में हुआ था. लेकिन अंग्रेजों से पहले, स्वामी विशुद्धानंद की प्रेरणा से कोलकाता के सेठ सूरजमल ने 1879 में यहाँ लोहे की तारों से एक मजबूत पुल बनवाया था, जो 1924 की बाढ़ में बह गया था.
इसके बाद, ब्रिटिश सरकार ने इस पुल का पुनर्निर्माण किया.
वैसे आपको बता दें कि सुरक्षा कारणों के चलते उत्तराखंड सरकार ने ऋषिकेश में गंगा नदी पर बने लगभग 79 साल पुराने लक्ष्मण झूले को बंद कर दिया है और अब इस पुल का पुनर्निर्माण कांच के पुल के रूप में किया जा रहा है .
इसका निर्माण 1923 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था. लेकिन कहा जाता है कि उसी साल भारी बारिश हुई, जिससे इसकी नींव कमजोर हो गई. इसके बाद, 1927 में फिर से इसकी नींव रखी गई और तीन साल बाद, यानी 11 अप्रैल 1930 को यह पुल पूरी तरह तैयार हो गया. शुरुआत में यह पुल जूट की रस्सियों से बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे लोहे के तारों से मजबूत किया गया.
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लक्ष्मण झूला , ऋषिकेश |
2. राम झूला
लक्ष्मण झूला के समान, राम झूला भी गंगा नदी पर बना एक पुल है. इस पुल की लंबाई 750 फीट है, और यहाँ से आप गंगा नदी और आसपास के खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकते हैं. इस पुल का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, इसका निर्माण वर्ष 1983 में हुआ था.
राम झूला ऋषिकेश के प्रमुख लैंडमार्क्स में से एक माना जाता है. यह स्थान मुनि की रेती से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है. गंगा नदी पर बने इस लोहे के पुल का आकार लक्ष्मण झूले से बड़ा है, जो भगवान राम के बड़े होने का प्रतीक भी माना जाता है. यह पुल स्वर्ग आश्रम को श्री शिवानंद आश्रम से जोड़ता है. इसके दोनों ओर आश्रम और मंदिर स्थित हैं, जहां आप अध्यात्मिक शांति का अनुभव कर सकते हैं. रात के समय पुल पर जगमगाती लाइट्स इसे और भी आकर्षक बना देती हैं.
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राम झूला , ऋषिकेश |
3. त्रिवेणी घाट
त्रिवेणी घाट एक बेहद पवित्र स्थल है और ऋषिकेश के प्रमुख स्थलों में से एक माना जाता है. यह ऋषिकेश का मुख्य स्नान घाट है, जहाँ सुबह-सुबह कई श्रद्धालु पवित्र माँ गंगा में डुबकी लगाते हैं. यहाँ हर शाम को होने वाली गंगा आरती एक दिव्य अनुभव है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर होता है.
कहा जाता है कि त्रिवेणी घाट पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियाँ – गंगा, यमुना, और सरस्वती का संगम होता है. इसी स्थान से गंगा नदी दाईं ओर मुड़ जाती है.त्रिवेणी घाट के एक छोर पर भगवान शिव की जटाओं से निकलती गंगा की मनमोहक प्रतिमा है, जबकि दूसरी ओर भगवान श्रीकृष्ण की विशाल मूर्ति है, जिसमें वे अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हैं. साथ ही एक भव्य गंगा माता का मंदिर भी यहाँ स्थित है.
घाट पर चलते हुए, जब आप दूसरी ओर की सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं, तो आपको गंगा के सुंदर रूप के दर्शन होते हैं, शाम के समय त्रिवेणी घाट पर भव्य आरती होती है, और श्रद्धालु गंगा में दीप प्रवाहित करते हैं. उस समय घाट पर भारी भीड़ रहती है, और वातावरण पूरी तरह से आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है.
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त्रिवेणी घाट, ऋषिकेश |
4. परमार्थ निकेतन आश्रम
परमार्थ निकेतन आश्रम की स्थापना स्वामी सुखदेवानंद जी ने की थी. यह आश्रम 1942 में स्थापित किया गया था. इसके बाद स्वामी चिदानंद सरस्वती को इस आश्रम का संस्थापक अध्यक्ष चुना गया. यह आश्रम अनाथ और गरीब बच्चों के लिए बनाया गया है, जहाँ उन्हें वेदों और पारंपरिक शिक्षा प्रदान की जाती है. परमार्थ निकेतन की गंगा आरती विश्वभर में प्रसिद्ध है, इसलिए इस आरती को देखने के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं.
ठंडी बहेरी हवा के बीच हजारों दीपकों की जगमगाती रोशनी देखना एक अद्भुत अनुभव होता है.
इस आश्रम में प्रवेश करते ही आपको बाईं तरफ सुंदर मूर्तियाँ देखने को मिलेंगी, जो पुरानी कथाओं पर आधारित हैं. दाईं ओर देवताओं की विशाल मूर्तियाँ, पर्वत, और उनकी छायाएँ भी आपके सामने होंगी.
यह आश्रम भीतर से बेहद सुंदर है, मानो आप एक अलग ही दुनिया में आ गए हों. चारों ओर हरियाली है, और इस आश्रम की दैनिक गतिविधियों में सुबह की प्रार्थना, दैनिक योग, ध्यान की कक्षाएँ, दैनिक सत्संग, कीर्तन, और सूर्यास्त के समय एक प्रसिद्ध गंगा आरती शामिल हैं. इसके अलावा, यहाँ आपको प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद के उपचार आदि की ट्रेनिंग भी दी जाती है.
कुल मिलाकर, यह आश्रम देखने लायक है, रमणीय है, और यहाँ से आप बहुत कुछ सीख सकते हैं.
जब भी आप ऋषिकेश जाएँ, तो परमार्थ निकेतन आश्रम की आरती देखना न भूलें. साथ ही, इस आश्रम में एक बार ज़रूर घूमें. निश्चित ही, यहाँ घूमने से आपके मन को शांति का एहसास होगा.
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परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश |
5. नीलकंठ महादेव मंदिर
ऋषिकेश के पास मणिकूट पर्वत पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है
पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष का सेवन किया था. समुद्र मंथन से अमृत और विष दोनों निकले थे, और विष भगवान शिव द्वारा पिया गया था. कहा जाता है कि यह वही स्थान है, जहाँ भगवान शिव ने विष का पान किया था. जब शिवजी ने विष पिया तो उनका गला नीला पड़ गया था. विष के प्रभाव को रोकने के लिए माता पार्वती ने उनका गला दबाया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुँच सके, और इस कारण विष उनके गले में ही रह गया. विष के प्रभाव से उनके गले का रंग नीला हो गया, और इसी कारण से उन्हें नीलकंठ कहा जाता है.
मंदिर के समीप एक जलप्रपात भी है, जहाँ श्रद्धालु मंदिर के दर्शन से पहले स्नान करते हैं. मणिकूट, विष्णुकूट और ब्रह्मकूट की पहाड़ियों से घिरा यह नीलकंठ मंदिर समुद्र तल से 1330 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत ही सुगम और सुंदर है. आप यहाँ पैदल यात्रा कर सकते हैं या वाहन के माध्यम से भी आ सकते हैं.
मंदिर में एक मुख्य शिवलिंग की प्रतिमा है, जिसकी श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं. नीलकंठ मंदिर में विशेष रूप से शिवरात्रि (फरवरी-मार्च) और श्रावण (जुलाई-अगस्त) के अवसर पर मेले का आयोजन होता है, जहाँ हजारों की संख्या में तीर्थयात्री अपनी मनोकामनाएँ लेकर मंदिर का दर्शन करने आते हैं.
मंदिर परिसर में एक पवित्र पीपल का पेड़ भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि यदि श्रद्धालु इस पेड़ के चारों ओर धागा बाँधकर सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. यहां की यात्रा एक धार्मिक और प्राकृतिक अनुभव प्रदान करती है. हरे-भरे जंगलों से घिरा यह स्थान भक्तों के लिए पवित्र माना जाता है.
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नीलकंठ महादेव मंदिर , पौड़ी गढ़वाल |
6. शिवपुरी
यदि आप रोमांच के शौकीन हैं, तो शिवपुरी आपके लिए एक बेहतरीन डेस्टिनेशन है. यहां आप रिवर राफ्टिंग, कैंपिंग, बोनफायर, बंजी जंपिंग, ज़िप लाइन, स्काई साइक्लिंग और ट्रेकिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का आनंद उठा सकते हैं.उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में बसा शिवपुरी, ऋषिकेश से लगभग 16 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव है, जो अपनी विभिन्न रोमांचक गतिविधियों के लिए मशहूर है.
अगर आप वीकेंड पर घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो ऋषिकेश का शिवपुरी आपके लिए एक आदर्श स्थान साबित हो सकता है.
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रिवर राफ्टिंग, शिवपुरी |
7. वशिष्ठ गुफा
यह प्राचीन गुफा ऋषि वशिष्ठ के तप स्थल के रूप में मानी जाती है. गंगा नदी के किनारे स्थित इस गुफा में अद्भुत शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है. यहां ध्यान करना एक विशेष आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करता है.
वशिष्ठ गुफा ऋषिकेश से लगभग 16 किलोमीटर दूर, गंगा नदी के तट पर स्थित है. यह गुफा ध्यान और तप के लिए एक प्रमुख स्थान है. कहा जाता है कि महर्षि वशिष्ठ ने यहां कई वर्षों तक कठोर तप किया था, जिसके कारण इस गुफा का नाम वशिष्ठ गुफा रखा गया.गुफा के पास ही एक पवित्र शिवलिंग भी स्थित है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत श्रद्धा के साथ पूजा जाता है. विख्यात हिंदू संत श्री पुरुषोत्तम नंद जी 1928 में इस स्थान पर आए थे, और उनका आश्रम गुफा के पास स्थित है, जहाँ कई पर्यटक नियमित रूप से आते रहते हैं. स्वामी पुरुषोत्तम नंद जी ने इस स्थान पर 53 वर्षों तक कठोर साधना की, जिसके बाद यह स्थान और अधिक प्रसिद्ध हुआ, और लोगों को महर्षि वशिष्ठ गुफा के बारे में जानकारी मिली.
गुफा के अंदर प्रवेश करने पर आपको मौसम की गर्मी या सर्दी का कोई असर महसूस नहीं होगा. चाहे बाहर कितनी भी गर्मी हो, गुफा का तापमान सामान्य बना रहता है. यहां तक कि बारिश भी गुफा के अंदर कोई प्रभाव नहीं डालती. कहा जाता है कि वर्षों पहले वशिष्ठ मुनि ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए यहां कठोर तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी इच्छा जाननी चाही. तब वशिष्ठ मुनि ने कहा कि उन्होंने इस स्थान पर भगवान शिव को पाया है, इसलिए वे यहां स्थायी रूप से विराजमान हो जाएं.
भगवान शिव ने उत्तर दिया, "मुनि, यदि मैं इस गुफा में ही कैद हो जाऊँगा, तो मेरी पूरी सृष्टि की देखभाल कौन करेगा?
इसके बाद, महर्षि वशिष्ठ ने भगवान शिव की आराधना में इस गुफा के भीतर अपने प्राण त्याग दिए.
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वशिष्ठ गुफा द्वार |
8. कुंजापुरी मंदिर
मां भगवती कुंजापुरी का मंदिर उत्तराखंड में एक अनोखी और दिव्य मान्यता रखने वाला स्थल है. यह मंदिर ऋषिकेश से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जो टिहरी गढ़वाल ज़िले के अंतर्गत आता है.
यह मंदिर 51 सिद्ध पीठों में से एक है. मां कुंजापुरी का यह सिद्ध पीठ ऋषिकेश से नरेंद्रनगर-चंबा राष्ट्रीय राजमार्ग पर, हिंडोलाखाल के पास, समुद्र तल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कहते हैं कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित मंदिरों में से यह भी एक मंदिर है.स्कंद पुराण के अनुसार, जब माता सती के शरीर के 51 अंग गिरे थे, तो जहां-जहां अंग गिरे वहां सिद्ध पीठ स्थापित हुए. उन्हीं में से एक यह कुंजापुरी सिद्ध पीठ है, जहां ऐसा माना जाता है कि माता का कुंज यानी वक्ष भाग गिरा था.
मंदिर के चारों ओर सुंदर प्राकृतिक दृश्य दिखाई देते हैं. पहाड़ों पर स्थित यह मंदिर भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है, जिसकी डोर माता के दर्शन से जुड़ी हुई है. मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो मंदिर की ऊंचाई का एहसास कराती हैं. मंदिर परिसर में भगवान शिव, भैरव, महाकाली और नृसिंह की मूर्तियां विराजमान हैं.
मंदिर से आप अनेक महत्वपूर्ण स्थलों का भी दर्शन कर सकते हैं. स्वर्गारोहिणी, गंगोत्री, ऋषिकेश, हरिद्वार जैसे क्षेत्रों का नज़ारा यहां से दिखता है. हिमालय की बर्फीली चोटियों का मनोरम दृश्य यहां से देखा जा सकता है, जो एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है.
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माँ कुंजापुरी मंदिर , टिहरी गढ़वाल |
9. रिवर साइड कैंपिंग
गंगा के किनारे रिवर साइड कैंपिंग एक अनोखा अनुभव है. रात के समय तारे देखने और बोनफ़ायर के पास बैठकर गाना-बजाना आपको प्रकृति के करीब ले जाता है.
गंगा नदी के किनारे बसे हुए कैंपों में ठहरना आपको शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर एक सुकून भरा अहसास दिलाता है. यहाँ के शिविरों में ठहरकर आप सुबह-सुबह गंगा आरती का आनंद ले सकते हैं.
कैंपिंग के दौरान आप नदी में रिवर राफ्टिंग, कयाकिंग और बॉडी सर्फिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का भी मज़ा ले सकते हैं. इसके अलावा, पास के जंगलों में ट्रैकिंग और वाइल्डलाइफ सफारी का अनुभव भी अविस्मरणीय होता है. साफ हवा, ठंडी हवाएँ, और गंगा की कल-कल ध्वनि आपके मन को तरोताजा कर देती हैं.
ऋषिकेश की कैंपिंग सिर्फ रोमांच नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का भी माध्यम है. अगर आप योग और ध्यान में रुचि रखते हैं, तो यहां कई कैंप आपको यह अनुभव भी कराते हैं. कुल मिलाकर, ऋषिकेश में नदी किनारे कैंपिंग जीवनभर की यादों को संजोने का एक बेहतरीन मौका है.
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रिवर साइड कैंपिंग , ऋषिकेश |
10. बीटल्स आश्रम ( चौरासी कुटिया )
बीटल्स बैंड ने 1968 में इस आश्रम का दौरा किया था, जिसके बाद यह जगह दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई. इसे 'चौरासी कुटिया' के नाम से भी जाना जाता है. यह आश्रम ऋषिकेश के राजाजी रिज़र्व के अंतर्गत आता है और ऋषिकेश में जानकीसेतु पार करने के बाद गंगा किनारे स्थित है.सुबह 10 बजे यह आश्रम खुलता है, और भारतीय पर्यटकों के लिए 100 रुपये की टिकट लेकर यहां प्रवेश किया जा सकता है, जबकि विदेशी पर्यटकों को 1200 रुपये देकर यहां प्रवेश मिलता है.
इस आश्रम की स्थापना महर्षि महेश योगी जी ने की थी. उन्होंने 1961 में इसे वन विभाग से लीज़ पर लिया था. शुरुआत में इसे शंकराचार्य आश्रम के नाम से जाना जाता था, फिर इसे 'चौरासी कुटिया' भी कहा जाने लगा. महर्षि ने इसे 'अंतरराष्ट्रीय ध्यान अकादमी' का नाम दिया था. यहां ध्यान साधना के लिए दो मंजिला गोल गुंबदनुमा कुटियों का निर्माण किया गया, जिन्हें 'कुटिया' कहा जाता है. इन कुटियों का निर्माण गंगा नदी से लाए गए गोल पत्थरों से किया गया था.
इस आश्रम ने 1968 में विशेष प्रसिद्धि पाई जब ब्रिटिश रॉक बैंड 'बीटल्स' ने यहां आकर ध्यान का अध्ययन किया. यहां रहकर उन्होंने कई गीतों की रचना की, जो आगे चलकर काफी लोकप्रिय हुए.
आश्रम के प्रदर्शनी हॉल में उस समय की कई तस्वीरें लगाई गई हैं, जिनमें ध्यान क्रियाओं और बीटल्स के अनुभवों को दर्शाया गया है.
यहां आने वाले पर्यटक न केवल योग और ध्यान का अनुभव करते हैं, बल्कि प्रकृति की गोद में अद्वितीय शांति का भी अहसास कर सकते हैं.
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बीटल्स आश्रम ऋषिकेश |
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