साल 2024 के जनवरी महीने में देहरादून के भानियावाला जाना हुआ. डिंडयाली होमस्टे और कैफ़े जाने का कोई विचार नहीं था, लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण देहरादून से आगे का सफर रद्द करना पड़ा. इस जगह के बारे में पहले थोड़ा-बहुत सुन रखा था, इसलिए तय किया कि आगे जाने की बजाय डिंडयाली में ही दिन का खाना खाया जाए.
मैं मूल रूप से गांव से जुड़ा व्यक्ति हूं, जिसने अपना बचपन गांव में बिताया और अब आजीविका के लिए दिल्ली में कार्यरत हूं. जैसे ही डिंडयाली में कदम रखा, वहां की कई चीज़ों ने मुझे मेरे अतीत से जोड़ दिया.
यकीनन यहां आने वाले कई और लोग भी ऐसे होंगे, जिन्होंने यहां आकर वही महसूस किया होगा जो मैंने किया.
डिंडयाली में मेरा अनुभव बेहद शानदार और अविस्मरणीय रहा. आइए जानते हैं इस खास जगह के बारे में और भी रोचक बातें.
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डिंडयाली ,थानो ,सिरोन गांव |
डिंडयाली का अर्थ:
डिंडयाली गढ़वाली बोली में इस्तेमाल होने वाला एक शब्द है, जिसका अर्थ है पहली मंजिल पर बने दो कमरों के बीच दीवार न देकर उन्हें एक बड़े हॉल के रूप में इस्तेमाल करना. इसे ही डिंडयाली कहते हैं.यह घर का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, जहाँ पूरा परिवार एक साथ बैठ सकता है. पुराने ज़माने में जो घर बनाए जाते थे, उनमें अक्सर नीचे चार कमरे होते थे – दो कमरे सामने की ओर और उनके पीछे जुड़े हुए दो और कमरे.
पहली मंजिल पर सामने के दोनों कमरों के बीच दीवार नहीं बनाई जाती थी, जिससे एक बड़ी डिंडयाली बनती थी. इसका उपयोग सोने के लिए और मेहमानों के स्वागत के लिए किया जाता था.
डिंडयाली होमस्टे और कैफे कहां है?
डिंडयाली होमस्टे और कैफे उत्तराखंड की शीतकालीन राजधानी देहरादून से लगभग 23 किमी की दूरी पर सिरों गांव में स्थित है. यह देहरादून ज़िले के रायपुर ब्लॉक और ऋषिकेश तहसील में आता है और कोटिमाय चक ग्राम पंचायत के अंतर्गत है.जॉली ग्रांट एयरपोर्ट से इस जगह की दूरी मात्र 10 किमी है. यहाँ पहुँचने का रास्ता जंगलों के बीच से होकर गुजरता है, जो बेहद सुंदर दिखाई देता है. सड़क के दोनों ओर घने जंगल प्रकृति की खूबसूरती का अहसास कराते हैं.
जंगल पार करने के बाद आप डिंडयाली होमस्टे और कैफे पहुँचेंगे, जिसके चारों ओर गांव के खेत और ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ इसकी शोभा बढ़ाते हैं.
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डिंडयाली का प्रवेश द्वार |
डिंडयाली में क्या खास है?
डिंडयाली होमस्टे और कैफे का यह अद्भुत विचार अरुण नैथानी जी का है, जिन्होंने अपने पूर्वजों के पुराने, पारंपरिक गढ़वाली दो-मंजिला घर को एक खूबसूरत होमस्टे और कैफे में बदल दिया है. ऊपरी मंजिल में एक ध्यान कक्ष और ग्राउंड फ्लोर पर तीन कमरों के साथ गढ़वाली संस्कृति से सजे हुए एक सुंदर बगीचे का निर्माण किया गया है.
यहां का शांत वातावरण और पहाड़ों के पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेना अपने आप में एक खास अनुभव है. अरुण नैथानी जी ने अपने परिवार की विरासत को इस होमस्टे और कैफे के रूप में सजाया है. यहां का प्रमुख आकर्षण आगंतुकों का स्वागत करने के लिए "पिठाई" लगाना है, जो उत्तराखंड की एक खास परंपरा है.डिंडयाली में कदम रखते ही आपको शांति और सुकून का एहसास होगा. शहर की भीड़भाड़ से दूर, यह गांव का शांत माहौल आपको एक नई दुनिया में ले जाता है. डिंडयाली धीरे-धीरे एक खास पर्यटक स्थल के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, और यहां विदेशों से भी पर्यटक घूमने और पहाड़ी व्यंजन चखने आते हैं.
कैफे में प्रवेश करते ही हर कोने पर गढ़वाली संस्कृति की झलक दिखती है. सबसे पहले आप महसू देवता और केदारनाथ मंदिर की एक छोटी प्रतिमा देख सकते हैं, जो उत्तराखंड की विशेष धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती है. साथ ही, यहां गढ़वाल के वाद्य यंत्र जैसे ढोल-दमौ की झलक भी दिखाई देती है, जो पारंपरिक संगीत से इस स्थान को जीवंत बनाते हैं.
यहां रहने का इंतजाम भी पहाड़ी शैली में किया गया है, जिसमें सभी आवश्यक सुविधाएं मौजूद हैं. अगर आप रात में यहां ठहरना चाहते हैं, तो पहाड़ी शैली में बने कमरों में आपको एक अलग अनुभव मिलेगा.
डिंडयाली में खानपान और उसकी कीमतें:
डिंडयाली होमस्टे और कैफे में मुख्य रूप से पहाड़ी व्यंजन परोसे जाते हैं, जो हर दिन बदलते मेनू के साथ उपलब्ध हैं, यहां आपको कुछ विशेष पहाड़ी व्यंजन मिलेंगे जैसे:![]() |
डिंडयाली, मेनू और रेट लिस्ट |
भंगजीरे की चटनी
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