हाल के दिनों में उत्तराखंड में UCC (समान नागरिक संहिता) बिल ,चर्चा का प्रमुख विषय बना हुआ है. उत्तराखंड भारत का पहला राज्य है जिसने UCC बिल को सबसे पहले पारित किया और इसे सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है/
इस बिल का मुख्य उद्देश्य सभी नागरिकों के लिए विवाह, गोद लेने, संपत्ति और उत्तराधिकार जैसे मामलों में समान अधिकार मिले ये सुनिश्चित करना है, चाहे उनका धर्म या जाति कुछ भी हो. यह कानून उन असमानताओं को खत्म करने के लिए लाया गया है, जो अलग-अलग धर्मों और परंपराओं के चलते पैदा होती हैं.
आइए, उत्तराखंड में UCC के सभी पहलुओं को विस्तार से समझते हैं और इसके सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक प्रभावों पर नजर डालते हैं.
समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?
7 फरवरी 2024 को उत्तराखंड विधानसभा ने UCC बिल को पारित किया, जिसे बाद में भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 13 मार्च , 2024 को स्वीकृति दी और इसे मंजूरी प्रदान की. इसके साथ ही, उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन गया जहां UCC बिल लागू हुआ.
पिछले कई वर्षों से भारत में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, लेकिन उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना जिसने इस बिल पर मुहर लगाई और इसे लागू किया.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे एक साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय बताया और उम्मीद जताई कि अन्य राज्य भी इसे अपनाएंगे. राज्य सरकार ने इस संहिता को लागू करने के लिए एक समिति बनाई थी, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजन प्रकाश देसाई ने किया था.
UCC के लागू होने से संभावित लाभ क्या हो सकते हैं?
- क्योंकि UCC सभी नागरिकों को समान कानून और अधिकार प्रदान करेगा, इससे यह समझा जा सकता है कि जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा. सभी को कानून की नजर में समानता मिलेगी और सभी के साथ निष्पक्ष रूप से न्याय किया जाएगा.
- महिलाओं के लिए भी यह कानून काफी सहायक हो सकता है, विशेष रूप से विवाह और उत्तराधिकार जैसे मामलों में.
- यह कानून लागू होने से कानूनी प्रक्रियाओं में सरलता आने की उम्मीद की जा सकती है. UCC के लागू होने से विभिन्न धर्मों और समुदायों के लिए बने अलग-अलग कानूनों को समाप्त किया जाएगा, जिससे कानून की प्रक्रिया अधिक सरल और व्यवस्थित हो सकेगी. जब सभी के लिए एक ही कानून होगा, तो निश्चित रूप से अदालतों में लंबित मामलों का बोझ भी कम होगा.
- UCC लागू होने से सामाजिक एकता बढ़ने की संभावना जताई जा सकती है, क्योंकि यह सभी समुदायों के बीच समानता की भावना को प्रोत्साहित करेगा. यह कानून धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर होने वाले विभाजनों को कम करने में मदद करेगा.
UCC के लागू होने से संभावित नुकसान क्या हो सकते हैं?
- UCC लागू होने का सबसे बड़ा प्रभाव धार्मिक भावनाओं पर पड़ सकता है. भारत में UCC का विरोध मुख्य रूप से धार्मिक समुदायों द्वारा ही किया जाता रहा है, जिनका मानना है कि यह बिल उनकी धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं पर आघात है. इसलिए वे इस बिल का समर्थन नहीं करते. अल्पसंख्यक समुदाय इसे अपनी धार्मिक पहचान के लिए खतरा मान सकते हैं.
- भारतीय संविधान की विशेषता यह है कि यह सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को उनकी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता है. UCC लागू होने से क्या यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा, यह एक बड़ा सवाल हो सकता है.
UCC बिल से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु:
- UCC बिल महिलाओं के लिए काफी लाभकारी साबित हो सकता है. इस बिल में बाल विवाह पर रोक लगाने का प्रावधान है, जिसमें लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की बात की गई है, जिससे यह लड़कों की आयु के बराबर होगी.
- UCC बिल के लागू होने के बाद सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी के बाद विवाह पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा. इस दस्तावेज़ के बिना शादी को मान्यता नहीं दी जाएगी. विवाह प्रमाणपत्र न होने पर आप सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं उठा सकेंगे.
- इस बिल के तहत सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह का एक ही कानून लागू होगा. इस प्रकार, जहां पहले मुस्लिमों को 4-5 शादी करने की अनुमति थी, उस पर अब रोक लगाई जाएगी.
- इस बिल के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों को भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा. कानून के जानकारों का कहना है कि ऐसे पंजीकरण से समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए लाभ होगा.
- बिल में बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है. इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चे को गोद लेने का अधिकार देने का प्रावधान शामिल है. इससे न केवल परिवारों के लिए बच्चा गोद लेना अधिक सुगम होगा, बल्कि यह मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को समानता का अवसर प्रदान करेगा, जिससे वे भी अपने अधिकारों का पूर्ण रूप से उपयोग कर सकेंगी.
- UCC बिल के तहत संपत्ति का अधिकार दोनों बेटों और बेटियों को समान रूप से मिलेगा. वर्तमान में भारत में यह अधिकार केवल बेटों को दिया जाता है, जबकि बेटियाँ इससे वंचित रह जाती हैं. इस कानून के लागू होने से बेटियों को भी अपने अधिकार मिलेंगे, जिससे उन्हें संपत्ति में बराबरी का हिस्सा प्राप्त होगा.
- UCC बिल में मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक लगाने का प्रावधान भी शामिल किया गया है.
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता बिल का लागू होना एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है, जो समाज सुधार और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है. हालांकि इसके सामने कई चुनौतियाँ भी आने वाले समय में आ सकती हैं, लेकिन इस कानून से होने वाले लाभ समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा देने में सहायक होंगे. UCC को अपनाने के माध्यम से उत्तराखंड ने देश के अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल कायम की है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह कैसे प्रभावी रूप से अमल में आता है.
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