उत्तराखंड, जो प्रकृति की गोद में बसा हुआ एक सुंदर राज्य है, अपनी खूबसूरत पहाड़ियों, नदियों, मंदिरों और जंगलों के लिए जाना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस राज्य के प्रमुख प्रतीक कौन-कौन से हैं?
9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर भारत का 27वां राज्य बनाया गया. राज्य बनने के अगले ही वर्ष, यानी 2001 में उत्तराखंड के राज्य चिह्न सरकार द्वारा निर्धारित किये गए .
इस ब्लॉग में हम उत्तराखंड के प्रमुख प्रतीकों के बारे में जानेंगे, जो राज्य की पहचान और उसकी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं.
उत्तराखंड का राज्य चिह्न: हीरे के आकार का
उत्तराखंड का राज्य चिह्न दिखने में हीरे के आकार का है, जिसका पृष्ठभूमि सफेद रंग में है और मुख्य चिह्न को नीले रंग से दर्शाया गया है.
इस चिह्न के सबसे ऊपर लाल पृष्ठभूमि में भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ है, जिसे सफेद रंग में बनाया गया है और इसके नीचे "सत्यमेव जयते" लिखा हुआ है.
चिह्न के बीच में चार लहरें दिखाई गई हैं, जो राज्य की नदियों और पहाड़ी भूगोल का प्रतीक हैं.
सबसे नीचे नीले रंग से 'उत्तराखंड राज्य' लिखा गया है.
उत्तराखंड का राज्य पुष्प(फूल) : ब्रह्म कमल
उत्तराखंड का राज्य पुष्प ब्रह्म कमल हिमालय की ऊंचाइयों पर खिलने वाला एक अत्यंत दुर्लभ और पवित्र फूल है. इसका वैज्ञानिक नाम सौसुरिया ओबवल्लाटा (Saussurea obvallata) है. यह फूल रात के समय खिलता है और ठंडे वातावरण में ही पनपता है. इसे विशेष रूप से 3,000 से 4,600 मीटर की ऊंचाई पर देखा जा सकता है.
अगर इसकी सुगंध की बात करें, तो इसकी महक बेहद मनमोहक होती है. दिखने में यह फूल बैंगनी रंग का होता है और इसकी बाहरी परतें हल्के पीले और गुलाबी रंग की होती हैं, जो इसे ठंडे मौसम में सुरक्षित रखने का काम करती हैं.
आध्यात्मिक दृष्टि से ब्रह्म कमल का विशेष महत्व है और इसे खासकर बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे पवित्र धार्मिक स्थलों पर पूजा के लिए उपयोग किया जाता है.
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उत्तराखंड का राज्य पशु : कस्तूरी मृग
उत्तराखंड का राज्य पशु कस्तूरी मृग है जिसका वैज्ञानिक नाम मॉस्कस क्राइसोगास्टर (Moschus chrysogaster) है. इसे हिमालयन मस्क डियर के नाम से भी जाना जाता है. यह एक दुर्लभ और बेहद कीमती जानवर है क्योंकि इसके नाभि से निकलने वाली कस्तूरी का उपयोग परफ्यूम, धूप, अगरबत्ती और दवाइयों में किया जाता है. यही कारण है कि यह शिकारियों का निशाना भी बनता है.
कस्तूरी केवल नर कस्तूरी मृग की नाभि से निकलती है जबकि मादा कस्तूरी मृग में कस्तूरी नहीं पाई जाती.
इसका मुख्य आहार घास, पत्तियाँ और छोटे पौधे होते हैं. कस्तूरी मृग ऊँचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है, विशेषकर उत्तराखंड के बुग्यालों और घने जंगलों में.
स्वभाव से यह बेहद शर्मीला होता है और अकेले रहना पसंद करता है. जंगल में यह बिना कोई आवाज किए चुपचाप चलता है, जिससे इसकी उपस्थिति का अहसास भी नहीं होता.
कस्तूरी मृग का रंग भूरा होता है और उसके शरीर पर काले-पीले रंग के धब्बे होते हैं. इसका कद अन्य मृगों की तुलना में छोटा होता है. सामान्यतः नर और मादा कस्तूरी मृग देखने में लगभग एक जैसे लगते हैं लेकिन नर की पहचान उसके दो नुकीले दांतों से होती है जो मुंह से बाहर की ओर निकले और पीछे की तरफ झुके होते हैं.
कस्तूरी मृग के सींग नहीं होते और इसका वजन 8 से 15 किलोग्राम तक होता है.
उत्तराखंड का राज्य वृक्ष : बुराँस
उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांश है जिसका वैज्ञानिक नाम रोडोडेन्ड्रान अरबोरियम (Rhododendron Arboreum) है. यह पर्वतीय क्षेत्र का एक विशेष वृक्ष है जिसकी प्रजाति अन्य कहीं नहीं मिलती.
बुरांश मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में 1500 से 3600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है. इसकी पत्तियां मोटी और इसके फूल घंटी के आकार के गहरे लाल रंग के होते हैं. मार्च और अप्रैल के महीनों में जब इस वृक्ष पर फूल खिलते हैं, तो यह बेहद खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत करता है.
इसके फूल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. साथ ही पर्वतीय इलाकों में जल स्रोतों को बनाए रखने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है.
बुरांश का उपयोग कृषि उपकरणों के हैंडल बनाने में भी किया जाता है. इसके फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है और इसकी तासीर ठंडी होती है. इसके फूलों का उपयोग रंग बनाने में भी किया जाता है.
घने हरे पेड़ों पर जब बुरांश के गहरे लाल रंग के फूल खिलते हैं तो ऐसा लगता है जैसे जंगल लाल चादर में लिपट गया हो. बुरांश को सुंदरता, कोमलता और रोमानी भावनाओं का प्रतीक माना जाता है.
उत्तराखंड का राज्य पक्षी : हिमालयी मोनाल
उत्तराखंड का राज्य पक्षी हिमालयी मोनाल है जिसे हिमालय मयूर या मोर के नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम लोफ़ोफ़ोरस इम्पिजेनस (Lophophorus impejanus) है.
नीले, काले, और हरे रंगों के मिश्रण से सजा यह पक्षी अपनी हरे रंग की पूंछ के लिए जाना जाता है. मोर की तरह ही इसके सिर पर भी रंगीन कलगी होती है जो इसे आकर्षक बनाती है.
मोनाल पूरे हिमालयी क्षेत्र में 2500 से 5000 मीटर की ऊंचाई वाले घने जंगलों में पाया जाता है. उत्तराखंड के स्थानीय लोग इसे "मुनाल" के नाम से भी जानते हैं.
मोनाल और डफिया एक ही प्रजाति के पक्षी हैं जिनमें मुनाल मादा और डफिया नर पक्षी होता है. मोनाल न केवल उत्तराखंड का बल्कि हिमाचल प्रदेश का भी राज्य पक्षी है, और नेपाल का यह राष्ट्रीय पक्षी है.
मोनाल अपना घोंसला नहीं बनाती बल्कि किसी चट्टान या पेड़ के छेद में अपने अंडे देती है. यह वनस्पति, कीड़े-मकोड़े और आलू को अपना भोजन बनाती है जिसमें आलू इसका प्रिय भोजन होता है. आलू की फसलों को मोनाल काफी नुकसान पहुंचाती है.
पहले इसका मांस और खाल के लिए बहुत शिकार किया जाता था लेकिन 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसके शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र: ढोल
उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र "ढोल" है, जो ढोलक के समान दिखने वाला राज्य का एक प्रमुख पारंपरिक वाद्य यंत्र है. इसे विशेष रूप से लोक नृत्य, धार्मिक आयोजनों, शादियों, त्योहारों, और देवी-देवताओं की पूजा के अवसर पर बजाया जाता है.
हालांकि ढोल और दामाऊं अलग-अलग वाद्य यंत्र हैं लेकिन इन्हें अक्सर साथ में बजाया जाता है. ढोल आकार में दामाऊं से लगभग तीन गुना बड़ा होता है. जब ये दोनों यंत्र एक साथ बजते हैं, तो एक विशिष्ट और ऊर्जावान ध्वनि उत्पन्न होती है जो पहाड़ी संस्कृति की समृद्ध धरोहर का प्रतीक है. ढोल और दामाऊं बजाने के लिए वर्षों की साधना और अभ्यास की आवश्यकता होती है और यह कला पारंपरिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाई जाती है.
ढोल को लकड़ी से बनाया जाता है जिसके दोनों सिरों पर चमड़े की परत चढ़ाई जाती है. ढोल की बायीं तरफ बकरी की पतली खाल और दायीं तरफ भैंस की मोटी खाल का उपयोग किया जाता है, जो इसे विशिष्ट ध्वनि प्रदान करती है.
दामाऊं के किनारों को मजबूती और टिकाऊ बनाने के लिए तांबे की धातु की रिंग या तार का उपयोग किया जाता है, जिससे चमड़े को कसकर बांधा जा सके और इसकी ध्वनि साफ और गूंजदार हो.
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